कागजों में ही बन गया शौचालय,करोड़ों का गोलमाल..जिम्मेदार बर्खास्त
बिलासपुर
बिलासपुर में शौचालय निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपए का घोटाला करने वाले पंचायत सचिव अशोक कुर्मी को जिला पंचायत सीईओ ने बर्खास्त कर दिया है। 20 कामों में की 2 करोड़ 9 लाख 68 हजार रुपए की गड़बड़ी.घोटाला उजागर होने पर मामले की जांच कराई गई थी। जिसमें सचिव ने कागजों में शौचालय बनाकर लाखों रुपए का फर्जी बिल बनाकर भुगतान कर लिया। उसने अपने ही बेटे को मटेरियल सप्लायर बताकर 11 लाख 53 हजार रुपए का भुगतान कर दिया। मामला बिल्हा ब्लॉक के मटियारी पंचायत का है।
मटियारी ग्राम पंचायत के सचिव अशोक कुर्मी के शौचालय निर्माण के नाम पर फजीर्वाड़ा करने का मामला सामने आया है। ग्राम पंचायत मटियारी में सर्वे सूची के हिसाब से सिर्फ 80 शौचालय बनाए जाने थे। लेकिन, विभिन्न मदों से पंचायत सचिव ने रोकड़ पंजी में 640 शौचालय का खर्च बता दिया। मटेरियल सप्लायर के नाम फर्जी बिल भुगतान, अपने बेटे को लाभ, फर्जी मस्टर रोल, पेंशन में गड़बड़ी कर 2 करोड़ 9 लाख 68 हजार 917 रुपए ही हेराफेरी की है।
मामले की जांच के लिए जिला पंचायत सीईओ हरिस एस ने दीपक शर्मा व दीपक घोष को जांच अधिकारी बनाया था। दोनों जांच अधिकारियों ने जांच की। जिसमें पता चला कि ग्राम पंचायत में 14वें वित्त, डीएमएफटी, गौण खनिज और एलओबी मद से 154 शौचालय पूर्ण,137 शौचालय अपूर्ण और 157 शौचालय अधूरा बताया गया। दस्तावेजों में खर्च के हिसाब से 820 शौचालय बनाए गए हैं। जांच में 29 शौचालय ही मिले। जबकि 529 शौचालय कागजों में बनाकर 63 लाख 46 हजार 948 रुपए को सचिव ने हड़प लिया। जांच में 291 शौचालय के 71 लाख 68 हजार 948 रुपए की गड़बड़ी मिली है। इसी तरह शौचालय निर्माण में ही नहीं बल्कि शौचालय निर्माण के लिए मटेरियल सप्लायर के फर्जी बिल,कैश बुक में भी गड़बड़ी है, पेंशन में गड़बड़ी कर सरकारी रुपयों का बंदरबाट करने का मामला सामने आया है।
पंचायत सचिव अशोक कुर्मी ने अपने बेटे लोकेश कुर्मी को मटेरियल सप्लायर की दुकान खोलवा लिया। उसकी दुकान से मटेरियल खरीदी करना बताकर उसने 11 लाख 53 हजार 500 रुपए मटेरियल सप्लाई का भुगतान कर दिया। जांच के दौरान पंचायत सचिव के बेटे का बयान लिया गया, तब उसने बताया कि उसकी कोई दुकान ही नहीं है। वह सिर्फ मटेरियल सप्लाई का काम करता है। पंचायत सेवा अधिनियम के अनुसार पद पर रहते हुए व्यवसाय लाभ देने के पूर्व सक्षम अधिकारियों को इसकी जानकारी देना अनिवार्य है। लेकिन पंचायत सचिव ने ऐसा नहीं किया। मामले में बड़ी कार्रवाई संभव है।